आदिम गूंज ४

आस्था के सुर

घास नहीं जानती है दबना
घास का स्वभाव है उगना और पनपना
पल पल रौंदे जाने के बावजूद
सगर्व हर पल
अपनी उपस्थिति दर्ज करना

घास नहीं है सिर्फ घास
घास है एक विश्वास/एक आस्था
अनास्था के कर्कश कटु कोलाहल में
आस्था का सहज मधुर स्वर

जिंदगी की संपूर्णता का संकल्प
मुर्झाने/सूख जाने
झड़ जाने/उखड़ जाने का
एकमात्र सही विकल्प
नारकीय दावाग्नि में गूंजता पल पल
हरीतिमा का धीमा धीमा मखमली संगीत
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पानी का मन भी तो....

पानी का मन भी तो
होता होगा सुस्ताने का
क्यों न अपने जीवन में
हम सभी पानी सा बहते चलें
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जंगल क्यों बहाए बेबसी के आंसू
रात दिन छुप छुप कर
क्यों न हम सब मिल कर
उस के हंसने का ढेका ले ले
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ये धरती भी जल जल कर
भस्म हो जाएगी एक दिन
क्यों न मरहम रख कर
आज ही उस का कलेजा ठंडा कर लें
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बादल भी तो रोता होगा
देख तबाही और मौत का तांडव
देश निकाले का फरमान ले
आंसू गिराता बादल जो निकला था घर से
क्यों न आज फिर से उसे दोस्ती का पैगाम भेजें
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-उज्जवला ज्योति तिग्गा-

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