१.
कब तक गाऊंगी
मैं तुम्हारे गीत
या किसी दूसरे के गीत
क्यों न तलाशूं मैं अपने सुर ताल
और रचूं अपना संगीत
भले हों वे बेसुरे
ताल लय ज्ञान विहीन
और शब्द भी हों टूटे फ़ूटे
अनगढ़ और दरिद्र
........
........
२.
जान चुकी हूं
अब तो मैं भी
कि हर नए शिकार के लिए
मौजूद हैं
तुम्हारे पास
एक से एक नए
मुखौटों के भंडार और
अनगिन चालों का अंबार
........
........
-उज्जवला ज्योति तिग्गा-
कब तक गाऊंगी
मैं तुम्हारे गीत
या किसी दूसरे के गीत
क्यों न तलाशूं मैं अपने सुर ताल
और रचूं अपना संगीत
भले हों वे बेसुरे
ताल लय ज्ञान विहीन
और शब्द भी हों टूटे फ़ूटे
अनगढ़ और दरिद्र
........
........
२.
जान चुकी हूं
अब तो मैं भी
कि हर नए शिकार के लिए
मौजूद हैं
तुम्हारे पास
एक से एक नए
मुखौटों के भंडार और
अनगिन चालों का अंबार
........
........
-उज्जवला ज्योति तिग्गा-
0 टिप्पणियाँ:
एक टिप्पणी भेजें