प्राचीन काल में लोग प्रकृति की क्रूर शक्तियों के साथ बड़े ही रागात्मक तादात्मक और सामंजस्यपूर्ण एवं सौहार्दपूर्ण रिश्ते की डोर से बंधे हुए थे. जो एक ही पल में एक तरफ़ उन के दिलों को मोह लेती थी, तो दूसरी ओर उन्हें बुरी तरह भयभीत भी कर देती थी, और साथ ही उन में उत्सुकता और कौतुक जैसे मनोभावों को भी जन्म देती थी. यही वो समय था जब प्राचीनतम आदिम समाजों के उन भोले भाले निर्दोष और सरल लोगों के बीच विभिन्न मिथक और रहस्य अपनी आंखे खोल रहे थे, यानी जन्म ले रहे थे. ये प्राचीनतम आदिम गुट ही उन सभी अत्याधुनिक उन्नत और विकसित सामाजिक तानों बानों पर आधारित समाजों की आधारशिला है, जिससे आज हम सभी सुपरिचित है. पर वास्तविकता में आज के वे आधुनिक समाज उन लोगों से कई प्रकाश वर्ष दूर है, जो प्राचीनकाल में पूरी दुनिया भर में इधर से उधर घूमा करते थे.
हम उन आदिम गुटों में रहने वाले लोगों के सादगी भरे जीवनों के बारे में जानकर अचंभा किए बगैर नहीं रह सकते, पर उनका अपने आस पास की दुनिया यानी प्रकृति के साथ पल पल गूंजते किसी मधुर रागात्मक संगीत सा था. मानव जाति के उन आदिम पूर्वजों ने अपने सीमित ज्ञान से ब्रह्मांड और धरती के अभेद्य रहस्यभंडारों की कैद में उन रहस्यों पर से पर्दा उठाने की कोशिश की, जो उनके दिन प्रतिदिन की जिंदगी को प्रभावित कर रहे थे. उनके प्रयास भाषा के विकास के साथ साथ कला के विभिन्न स्वरूपों में जैसे चित्रकला, लेखन. नृत्य, संगीत के अलावा जादू टोना और धर्म के अपने आरंभिक अनगढ़ और अपरिष्कृत रूप में उभरे और पनपे. यही सब तो उनके विरासत और धरोहर की कुल जमा पूंजी थी, जिसे उन्होंने अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए मिथकों और लोककथाओं के माध्यम से अपनी मौखिक और कंठस्थ परंपरा में गूंथ कर सुरक्षित रखा.
हमारे उन प्राचीन पुरखों ने संसार में अपनी जगह समझने की कोशिश तो की, जिसमें उन्होंने खुद को पाया, पर उन्होंने कभी भी हमारी तरह प्रकृति पर नियंत्रण पाने और उसे अपने मुताबिक चलाने की कोशिश नहीं की. प्राचीन काल ने उन के दिलों में एकता, भाईचारा, सहयोग के साथ साथ प्रकृति के साथ शांतिपूर्ण सह अस्तित्व जैसी भावनाएं जगाई और उन्हें प्रतिष्ठित किया, जिसे वे आराध्या और पूज्या मानते थे. प्रकृति जो कि उनके आस पास जहां तहां बिखरे जिंदगी के विभिन्न रूपों की एक मात्र स्रोत है, वही तो आखिर उनकी भी जन्मदायिनी आश्रयस्थली और साथ ही पालनकर्ता ठहरी!
पर आधुनिक सभ्यता आज जीवन के हर क्षेत्र में हुए प्रौद्योगिकी विकास के जिस उच्चतम या चरम शिखर पर आसीन है, जहां मानव जिनोम के मानचित्रण में सफ़ल हुए लोग जो जिंदगी की बुनियादी निर्माण के लिए जिम्मेवार ब्लाक्स या ढांचा के रहस्योघाटन पर गर्वित होकर ईश्वर की भूमिका तक निभाने में तुल गए है. वे अमरत्व की चाह में मौत को भी ठेंगा दिखाते हुए क्लोनिंग जैसी तकनीकों का विकास करके चिर यौवन की लक्ष्य प्राप्ति जैसे जटिल और दुरूह अनुसंधानों में वक्त और पैसे दोनों को मुक्त हस्त से लुटा रहे हैं. जब कि ऐसे मुद्दे कई जटिल बातों और उलझनों से भरे हुए हैं, जो कि हमारे सामाजिक ताने बाने को, जो काल के प्रहारों और थपेड़ों से पूर्णतया नष्ट होने से किसी तरह बची रह गई थी, उसे ध्वस्त करने को आमादा है. पर हमारा सामाजिक ताना बाना भी अब काफ़ी हद तक चिथड़े चिथड़े होने के साथ साथ जर्जर हालत में पहुंच चुका है. आज के वैज्ञानिक रोगों के साथ निरंतर युद्धरत हैं पर कई असाध्य और घातक रोग आज भी उनकी नींदे उड़ा देती है, जो हमारी कुल आबादी या जनसख्या के एक काफ़ी बड़े हिस्से को एक ही झटके में सफ़ाया करने में सक्षम हैं.
आज तक हुई प्रौद्योगिकी विकास हमारे जीवनों की गुणवत्ता को बढ़ाने में पूरी तरह से विफल रही है. आज मानव अपने पूर्वजों की अपेक्षा कहीं अधिक अकेला और भयभीत है यद्यपि संचारतंत्र के क्षेत्र में हुई अभूतपूर्व प्रगति जो हमारे जीवन के हर क्षेत्र को गढ़ती और नियंत्रित करती है और जिसकी वजह से आज समूचा संसार एक वैश्विक गांव में तब्दील हो चुका है. यहां तक कि पृथ्वी के सुदूर या दूरस्थ कोनों में स्थित क्षेत्र जो कुछ दिनों पहले तक अलग थलग होने की वजह से किसी भी तरह के संपर्क के भी परे थे, वे आज हमारी दुनिया का अभिन्न हिस्सा बन चुके हैं. अब वैज्ञानिक भी ब्रह्मांड के परे झांकने के लिए भी अपनी कमर कस चुके है, ताकि उसके रहस्यों से मानव जाति परिचित हो सके. तौभी आधुनिक सभ्यताएं गरीबी, भूख, बेरोजगारी, अशिक्षा और जैसे महा विपत्तियों से ग्रसित है. आम जनता के लिए आधारभूत और बुनियादी सुविधाओं का अभाव और उनके बीच प्रगति और विकास के फलों का असमान वितरण उन के बीच असंतोष दुश्मनी और अविश्वास के बीज बो रहे हैं, जिनकी वजह से उपजा अंधा क्रोध सतह के नीचे खदबदा रहा है. अगर इन मुद्दों पर ध्यान नहीं दिया गया तो किसी दिन उसमें होने वाले विस्फ़ोट से सारी दुनिया दहल जाएगी. इस में कोई शक नहीं कि प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में हुए विकास के कारण एक ओर जहां हमारी जिंदगियां काफ़ी हद तक आसान हो गई हैं, पर दूसरी तरफ़ हम भावनाशून्य यंत्र या मशीन में बदल चुके है. जितनी अधिक प्रगति हुई है उतनी ही हमारी संजोकर रखने वाली मूल्यों का ह्रास हुआ है, जो कि हम सभी के पागलपन की हद चूहे दौड़ में शामिल होने की वजह से व्यर्थ और पुरानी पड़ चुकी हैं.
-उज्जवला ज्योति तिग्गा-
आदिम गाथा - एक परिपेक्ष्य
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खामोश फ़लक
on शुक्रवार, 8 अक्टूबर 2010
पर
12:48 pm
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1 टिप्पणियाँ:
adhunikta ki andhi daud men hm aur asbhy hote ja rhe hain.
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