आदिम गूंज २७




स्वप्नजीवियों का संसार...
शायद होता है
कमल के पास
धीरज और धैर्य
और साहस का/कोई
अक्षय भंडार
जिसके बूते
दे सके चुनौती वो
अपने आस-पास फ़ैले
काई और कीच के
दुर्गंधमय साम्राज्य को
जो तुला है सब कुछ पर
अपना आधिपत्य
अपना स्वामित्व जमाने को
सब-कुछ को
स्वयं का प्रतिबिंब
बन जीने को विवश कर
...
उससे जूझने या
उसे चुनौती देने की
शेखचिल्लीपूर्ण मूर्खता
या पागलपन पालना
किसके बस में होता है
सो सहर्ष स्वीकार करते है
उसका आधिपत्य/और
स्वामित्व अपने-अपने
जीवनों में
और प्रतिबिंब बन जीने को
एकमात्र विकल्प जान
दुनियादारी और समझदारी की
आड़ में यथास्थितिवादी संसार की
सत्ता को स्वीकारते
हर परिवर्तन के सपने को
भ्रम या भ्रांति मान
आकाशकुसुमीय स्वप्न जान
जीते हैं सब
 ...
उन गहराती कालिमायुक्त
परछाईयों का मकड़जाल
मलिन या धूमिल
नहीं कर पाता है
कमल के अंतस के
रूप-रंग को
उसका अप्रतिम सौन्दर्य
बरबस आकृष्ट करता है सबको
अपनी ओर
जो अचंभित हो
ताकते भर है उसको
जो जुटी है अपने
दल-बल के साथ
उस दुर्गंधमय
कीचयुक्त काईमय के
दमघोंटू परिवेश में भी
किसी तरह सांस ले
सब कुछ को भुला/प्रयास
एक नई सृष्टि रचने का
अपने अदम्य साहस से
अपनी दुनिया को बदलने का
असीम धैर्य और धीरज के साथ
परिवर्तन के लिए जूझने का
अपने अथक परिश्रम से
असंभव को संभव कर देने का
पर/ महज प्रतिबिंब बनकर
जीने के एकमात्र विकल्प की
धज्जियां बिखेर/उस
दमघोंटू साम्राज्य के चंगुल से
बाहर निकल, खुली हवा में
सांस लेना और एक सुगंधित
स्वर्ग रच देना अपने चारों ओर
...
पर लोग कहां जान पाते हैं
उसकी कहानी
उसके सुख-दुख का लेखा जोखा
कौन रखता है
जिसे तय करना पड़ता है
संघर्षमय सफ़र हर पल
एक सांस से
दूसरी सांस तक का
असहनीय सफ़र
...
उसकी घुटती-थमती सासों में
बसा है सपनों का
अक्षय भंडार
जो उन डूबती-थमती
सांसों की कमजोर/शिथिल
बुझ जाने को विवश
लड़खड़ाती-फ़ड़फ़ड़ाती
दीपशिखाओं में भी
फ़ूंक देता है
प्राणदायिनी उर्जा
...
कि आने वाली
सहमी सशंकित
कमल की कलियां भी
समय आने पर
किसी तरह हिम्मत बटोर
बढ़ पाएं उस असंभव सफ़र पर
और साकार कर पाएं
जिंदगी के हर उस स्वप्न को
जिनमें बसती-जीती है जिंदगी
...
कमल को देख
सिर्फ़ निहारकर
उसका सौन्दर्य
चकित अचंभित
भर होते हैं हम
पर/उस सा जीवन
महज मिथक भर है
सब के लिए
कोई आकाशकुसुमीय स्वप्न
यथार्थ के धरातल पर
ऐसे सुकुमार स्वप्न
भला कब तक
बच पाते हैं
चकनाचूर होने से
पर क्या उस
स्वप्न को जी पाना
इतना असंभव है क्या?!
...
जोखिमभरे रास्तों पर
चलकर ही तो
मिलती है
स्वप्निल संसार को
खोलने-खोजने की कुंजी
संकेतमाला और मानचित्र
और मिलता है उन
स्वप्नजीवियों और स्वप्नदर्शियों का पता
जो उस दुर्गम सफ़र पर
जा चुके या जाने को
आतुर व्याकुल हैं
ताकि ला पाएं
किसी तरह बटोर कर
परिवर्तन की बयार
जो आती है किसी
दूसरे लोक से/अपने
इस रूके-थमे
गतिहीन गतिरोध से भरे
मृतप्राय संसार में/जिसे
जिला दे अपनी असीम ऊर्जा से
ताकि पाएं हम सब/एक
फ़लवन्त और जयवन्त जीवन!!
...
...
-उज्जवला ज्योति तिग्गा-

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