काला इंद्रधनुष
बेसमझ/ बेखबर
लड़ रहे बार-बार
अपने अपने घरो में
बाजारो में/गलियो में
लड़ रहे आपस में
...
बेसमझ/ बेखबर
छोटी- छोटी बातों पर
छोटे बड़े झगड़े हैं
तू-तू है मैं-मैं है
रोज ही नए झगड़ें हैं
दंगे हैं
लूट हैं
कही मार-काट है
कितने ही वारदात हैं
घटते हैं रोज ही
कभी यहां/ कभी वहां
...
डोर बंधी कठ्पुतली से
उलझते है बार-बार
उन्हीं तानो- बानों में
उन्हीं आश्वासनों में
उन्हीं -उन्हीं बहानों में
उन्हीं कैदखानों में
डोर बंधी कठ्पुतली से
बेसमझ/ बेखबर
...
डोर जिनके पास है
बैठे हैं चुपचाप
देखते है तमाशा
पड़ता है उल्टा या सीधा
अभी जो फ़ैंका था पासा
देखते हैं तमाशा
डोर जिनके पास है
बैठे हैं चुपचाप
...
गुपचुप-गुपचुप
बुनते नए-नए जाल
रचते नए इद्रधनुष
एक जाल टूटे तो
दूसरा जाल हाजिर है
दूसरा जो टूटे तो
तीसरा जाल हाजिर है
जितने भी चाहें वे
उतने जाल हाजिर हैं
भेद न खुल जाए कहीं
चाल न समझ जाएं कहीं
ढीली पड़े न पकड़ कहीं
टूट न जाए डोर कहीं
गुपचुप-गुपचुप
बुनते नए-नए जाल
...
...
-उज्जवला ज्योति तिग्गा-
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