अरण्य गाथा

प्राचीन काल से नदियों की उर्वर घाटियां और सघन दुर्गम वनाच्छादित प्रदेश आदिम समाजों का उदगम स्थली रही हैं. वहीं पर वे आदिम बस्तियां पनपी और विकसित हुई. पर नदी घाटी सभ्यता और बीहड़ वनों में रहने वाले आदिम समाजों की विकास यात्रा काफी हद तक अलग और एक दूसरे से भिन्न भी रही हैं. एक तरफ जहां नदी घाटी सभ्यता विकास के उच्चतम शिखर पर आसीन है वहीं पर आज भी उन वनों में रहने वाले लोग सभ्यता के विकास यात्रा में खुद की गणना और पहचान एक सहयोगी या भागीदार के रूप में नहीं वरन उसके द्वारा सह्स्त्राब्दियों से छले और शोषित, हाशिए के भी परे धकियाए गए लोगों के रूप में करते हैं जो कि आज भी अपने पुरखों के द्वारा झेले गए अपमान उपेक्षा और अवहेलना के दंश के अभिशाप का घूंट को पीने को विवश हैं.

यह कमोबेश दुनिया के कोने कोने में बसने वाले उन आदिम समाजों के वंशजों की कहानी है जिन्होने प्रकृति की गोद में आश्रय लिया और उसे एक संरक्षक के रूप में पूज्य और आराध्य मानकर उसके साथ एक सामांजस्यपूर्ण सदभावना और सौहार्द का संबंध स्थापित किया और प्रकृति की संपूर्ण छ्टा को दैवीय प्रसाद और आशीर्वाद मान अपने जीवन को धन्य समझा. प्रकृति पूजकों का वो आदिम समाज को भी अपना आत्मीय संगी और अपने परिवारों और समाजों का एक अभिन्न हिस्सा तो मानता था जिससे वो वक्त पड़ने पर परिवार के सदस्य की तरह लड़ झगड़ और रूठ सकता था. पर उससे किसी भी कीमत पर एक शत्रु की तरह व्यवहार नहीं कर सकता था. प्रकृति का मंद मधुर संगीत उसके मन प्राण और सांसों में कुछ इस कदर रच बस गया था कि उसके बगैर जीने की कल्पना मात्र से वो सिहर उठता था.

पर सभ्यता के विकास के रथ का पहिया जब जब उन आदिम समाजों के समीप से गुजरा तो अपने पीछे तबाही और विध्वंस की असंख्य कहानियां छोड़ गया. जीवन के हर क्षेत्र में आए अभूतपूर्व परिवर्तनों और तकनीकी विकास के अहंकार से सराबोर मानव प्रकृति पर अपना आधिपत्य और वर्चस्व स्थापित करके उसे अपना गुलाम बनाने के एक सूत्रीय मिशन में जुट गया और मात्र एक दो सदी के भीतर ही सभी प्राकृतिक संसाधनों को बेदर्दी से लूट खसोटकर आज स्वयं तबाही के कगार पर आ खड़ा हुआ है जहां से वापसी लगभग असंभव ही प्रतीत हो रही है. सभ्यता के विकास ने जहां हमारे जीवन के हर क्षेत्र में अभूतपूर्व क्रांति ला दी है और हमारे जीवन को कुछ और सरल बना दिया है और किसी वरदान से कम नहीं लगता, वहीं ये समूची मानवता के लिए अभिशाप भी साबित हुआ है.

अगर हम इस समस्या को विश्व के परिपेक्ष्य में देखें तो यह बात पूरी तरह से चरितार्थ होती है कि विकास की अंधाधुंध होड़ ने मानवीय मूल्यों जैसे आपसी मेलप्रेम सहयोग समानता भाईचारा और एकता जैसे मूल्यों को ठुकराकर ईरषया डाह लालच षड्यन्त्र झूठ छ्ल प्रपंच जैसे मूल्यों को बढ़ावा दिया जिसमें लोगों को अपने स्वार्थ सिद्धि के लिए दूसरों को गुलाम और बंधुआ मजदूरों की तरह इस्तेमाल करने से भी गुरेज नहीं होता. जैसा कि अफ़्रीका, आस्ट्रेलिया, अमेरिका और अन्य देशों में हुआ जहां पर विकास की बढ़ती होड़ ने प्राकृतिक संसाधनों और लोगों का जमकर शोषण किया और उन लोगों को दोयम और उससे भी निचले स्तर का इंसान बना दिया जो आज भी अपने पुरखों का सा कठिन जीवन बिताने को विवश हैं.

आज विश्व में गहराता उर्जा संकट ग्लोबल वार्मिंग और दूसरे इससे संबंधित अन्य समस्याएं हमारे सामने विद्यमान हैं जिनका अगर जल्द समाधान न खोजा गया तो काफी देर हो सकती है. जंगलों के अंधाधुंध कटने के कारण ओजोन का बढ़ता छेद और ग्रीन हाउस के बढ़ते प्रभाव के कारण मौसम में बढ़ते बदलाव कहीं पर बाढ़ तो कहीं सूखे की समस्या ग्लेशियरों का पिघलना और नदियों का जलस्तर का बढ़ना और पेयजल की कमी आदि मानव निर्मित समस्याओं की वजह से विनाश का बटन दबने में अब बिल्कुल भी देरी नहीं है.

आवश्यकता इस बात की है कि अत्याचारों से त्रस्त या प्रकृति का आर्तनाद को हम खतरे की घंटी समझे. ताकि हम प्रकृति के साथ साथ उन लोगों का भी सम्मान करना सीखें जिन्होंने हजारों सालों से प्रकृति के निकट रहने के बाद भी उसका अनावश्यक दोहन नहीं किया और उसे किसी अनमोल थाती की तरह सहेज संवार कर विकसित समाजों के सामने एक अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किया जो प्रशंसा और इनाम की हकदार है न कि अपमान अवहेलना और तिरस्कार जैसा कि उन अभागों के हिस्से हमेशा ही आया है.

तो हम सबको मिलकर यह तय करना चाहिए कि समय के इस मोड़ पर दूसरों का अंधानुकरण करके प्रकृति और उसके साथ साथ खुद भी विनाश के गर्त में ढकेल देंगे या फिर सभी अपनी अपनी जिम्मेवारी और दायित्वों को समझकर उपरोक्त समस्याओं को छोटे छोटे स्तर पर व्यक्तिगत रूप से और सामूहिक रूप से उन्हें सुलझाने के अपने प्रयासों को अपना पहला और अंतिम कर्तव्यों के रूप में देखना आरंभ करेंगे. आशा है कि इस सबमें हमारा यह छोटा सा प्रयास एक मजबूत कड़ी साबित होगा.

-उज्जवला ज्योति तिग्गा-

1 टिप्पणियाँ:

विभा रानी श्रीवास्तव ने कहा…

today .... मंगलवार 31/12/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
आप भी एक नज़र देखें
धन्यवाद .... आभार

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