आदिवासी आवाज

आदिवासी समाज सदियों से तथाकथित सभ्य समाजों से उपेक्षित एक अदृश्य दुनिया के रूप में विश्व के विशालकाय मंच के किसी अंधेरे कोने में मौन खड़ा उस पल की प्रतीक्षा कर रहा है जब संपूर्ण विश्व की दृष्टि उस पर फोकस या केंद्रित होगी और उसके कार्यों की सराहना होगी. पर अफसोस वह गलत समय में गलत जगह पर खड़ा अपनी जगह तलाशने की असफल कोशिशों में लगा हुआ है. मंच पर अपनी जगह और जमीन तैयार करने के लिए आदिवासी समाज को भी उन्हीं औजारों और हथियारों को अपनाना होगा. जिनका प्रयोग करके अन्य समाज उस जगह पर पहुंचे हुए हैं.

पर दुर्भाग्यवश हजारों सालों से सभ्य समाजों से कटे रहने की वजह से और निरंतर उनसे शोषित होते रहने की वजह से आज हमारा समाज इस स्थिति में ही नहीं है, कि उनके सामने खड़ा रहकर अपनी उपस्थिति तक दर्ज करा सके. पर अब धुंधलके से बाहर निकलने का वक्त आ पहुंचा है और आवश्यकता इस बात कि है कि उस समाज के सदस्य होने के नाते हम सबका यह फर्ज बनता है कि अगर हमें अवसर मिलता है तो उसका हम भरपूर फायदा उठाएं और अपने समाज को विश्व के मंच पर उसकी सही और सम्मानजनक स्थान पर पहुंचाने में एक दूसरे की मदद और उत्साहवर्धन करें.

यही नहीं आवश्यकता इस बात की भी है कि इस कार्य को एक आहुति मान इसके लिए अपना तन मन और धन यहां तक कि अपना जीवन तक न्यौछावर करने के लिए भी तत्पर रहें क्योंकि अगर हम यह अवसर चूक जाते हैं तो हो सकता है कि आने वाले समयों में आदिवासी समाजों का नामोंनिशान तक मिट जाए और हमारे सामने अस्त्तित्व का संकट कुछ इस कदर गहरा जाए कि हम खुद को समय के आईने में पहचान भी नहीं सके और सिर्फ दूसरों द्वारा थोपी गई पहचानों पर खरा उतरने के लिए जीवन भर संघर्ष करते रहें और खुद की अपनी पहचान को जान समझकर उसे विकसित और किसी धरोहर के रूप में संवारने से चूक जाएं या फिर उसे किसी भूले बिसरे सपने की तरह भुलाकर जिंदगी के सफर में आगे बढ़ जाएं.

-उज्जवला ज्योति तिग्गा-

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