आदिम गूंज

बांसुरी वादक....

शायद तुम्हें लगे कि
डरा धमकाकर
मार डालोगे मुझे
और मुझ जैसे लोगों को
और
जीवन भर
चैन की बांसुरी बजाओगे
....

पर इतनी आसानी से
हम से अपना
पिंड न छुड़ा पाओगे
हम फिर से लेंगे जन्म
बनकर हजार आंखें
जो रखेंगें नजर
तुम्हारी एक एक हरकत पर
....

जो सोचा भी कभी
बचकर निकल भागने का
तो हजारों हाथ मिलकर
देंगें पटखनी
....

भागने की जगह तक
पड़ जाएगी कम तुम्हें
और भीड़ आएगी निकलकर
अपने अपने घरों से
और कुचल डालेगी
तुम जैसों को चुटकियों में
........

रेत पर लिखी दास्तान....

रेत पर लिखी सदियों तक
हमारी दास्तान तुमने
मनचाही मनमाफ़िक
कि मिटा सको जब चाहो
और गढ़ लो कोई भी नया झूठ
हर बार
हमें बहलाने फुसलाने को
पर अबकि बार
कामयाब न होगा
तुम्हारा कोई भी तीर या तुक्का
जब हम
लिखेंगे अपनी दास्तान
चट्टानों के दिलों पर
........
-उज्जवला ज्योति तिग्गा-

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