आदिम गूंज ३

मरीचिकाओं का जंगल....

कल्पनाओं के सुंदर आकाश में
उड़ान भरता रहा मन पाखी
रमा रहा कल्पनालोक की रंगीनियो में
भूल गया अपनी वास्तविकता
अपना परिचय
अपनी अस्मिता
अपनी पहचान
....
भूल गया अपना परिवेश
अपना पंथ
अपना नीड़
उसे यह भी रहा न याद
कि यह सब
है महज भ्रमजाल
मरीचिका समान
वास्तविकता से काफी दूर
यह नहीं है उस की मंजिल
....
अपितु उसे दूर
बहुत दूर जाना है
....
कल्पनाओं की रंगीन
चकाचौंध से परिपूर्ण
इन्द्रधनुषी दुनिया
से निकल कर
जब यथार्थ की कठोर धरती से
जब वह उड़ता उड़ता टकराया
....
होके बेहाल व्यथित तब
समझ में उसकी यह आया
उड़ान भरते समय
याद न रही
अपनी वास्तविकता
कि
उस की मंजिल धरती है
वास्तविक यथार्थ और कठोर
न कि कल्पना का सतरंगा आकाश
....
नहीं याद रहा
अपनी गति
अपनी सीमा
अपनी क्षमता
अपनी योग्यता
....
दूसरो के मापदंड पर
खरा उतरने हेतु
उल्लंघन कर अपनी सीमा का
भुलाया अपना परिवेश
रंगकर उन्हीं के रंग में
....
बाद में प्रकट हुआ ये भेद
कि उस में वो सामर्थ्य ही नहीं
जिस के बूते पर चला था
मुकाबला करने
....
व्यर्थ ही मन पाखी
मृग सदृश
भटकता रहा बरसों
मरीचिकाओं के जंगल में
कस्तूरी की तलाश में
....
जब कि सुलभ था उस को
छोटा ही सही
किंतु अपना आकाश
जहां वह
कर सकता था विचरण
स्वछंदतापूर्ण
जहां तक के उड़ान की
अनुमति देता उस का सामर्थ्य
....
पर उस पर भी
अब अधिकार न रहा उस का
मरीचिकाओं के जंगल में
भटकता रहा जीवन भर
शायद वही बन कर रह गई थी
उस की एक मात्र नियति
........
........

-उज्जवला ज्योति तिग्गा-

6 टिप्पणियाँ:

वीना श्रीवास्तव ने कहा…

रचना सुंदर है

Unknown ने कहा…

बहुत खूब, अतिसुन्दर बधाई और शुभकामनाएँ!
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तलाश जिन्दा लोगों की ! मर्जी आपकी, आग्रह हमारा!!
काले अंग्रेजों के विरुद्ध जारी संघर्ष को आगे बढाने के लिये, यह टिप्पणी प्रदर्शित होती रहे, आपका इतना सहयोग मिल सके तो भी कम नहीं होगा।
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सागर की तलाश में हम सिर्फ बूंद मात्र हैं, लेकिन सागर बूंद को नकार नहीं सकता। बूंद के बिना सागर को कोई फर्क नहीं पडता हो, लेकिन बूंद का सागर के बिना कोई अस्तित्व नहीं है। सागर में मिलन की दुरूह राह में आप सहित प्रत्येक संवेदनशील व्यक्ति का सहयोग जरूरी है। यदि यह टिप्पणी प्रदर्शित होगी तो विचार की यात्रा में आप भी सारथी बन जायेंगे।

ऐसे जिन्दा लोगों की तलाश हैं, जिनके दिल में भगत सिंह जैसा जज्बा तो हो। गौरे अंग्रेजों के खिलाफ भगत सिंह, सुभाष चन्द्र बोस, असफाकउल्लाह खाँ, चन्द्र शेखर आजाद जैसे असंख्य आजादी के दीवानों की भांति अलख जगाने वाले समर्पित और जिन्दादिल लोगों की आज के काले अंग्रेजों के आतंक के खिलाफ बुद्धिमतापूर्ण तरीके से लडने हेतु तलाश है।

इस देश में कानून का संरक्षण प्राप्त गुण्डों का राज कायम हो चुका है। सरकार द्वारा देश का विकास एवं उत्थान करने व जवाबदेह प्रशासनिक ढांचा खडा करने के लिये, हमसे हजारों तरीकों से टेक्स वूसला जाता है, लेकिन राजनेताओं के साथ-साथ अफसरशाही ने इस देश को खोखला और लोकतन्त्र को पंगु बना दिया गया है।

अफसर, जिन्हें संविधान में लोक सेवक (जनता के नौकर) कहा गया है, हकीकत में जनता के स्वामी बन बैठे हैं। सरकारी धन को डकारना और जनता पर अत्याचार करना इन्होंने कानूनी अधिकार समझ लिया है। कुछ स्वार्थी लोग इनका साथ देकर देश की अस्सी प्रतिशत जनता का कदम-कदम पर शोषण एवं तिरस्कार कर रहे हैं।

आज देश में भूख, चोरी, डकैती, मिलावट, जासूसी, नक्सलवाद, कालाबाजारी, मंहगाई आदि जो कुछ भी गैर-कानूनी ताण्डव हो रहा है, उसका सबसे बडा कारण है, भ्रष्ट एवं बेलगाम अफसरशाही द्वारा सत्ता का मनमाना दुरुपयोग करके भी कानून के शिकंजे बच निकलना।

शहीद-ए-आजम भगत सिंह के आदर्शों को सामने रखकर 1993 में स्थापित-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)-के 17 राज्यों में सेवारत 4300 से अधिक रजिस्टर्ड आजीवन सदस्यों की ओर से दूसरा सवाल-

सरकारी कुर्सी पर बैठकर, भेदभाव, मनमानी, भ्रष्टाचार, अत्याचार, शोषण और गैर-कानूनी काम करने वाले लोक सेवकों को भारतीय दण्ड विधानों के तहत कठोर सजा नहीं मिलने के कारण आम व्यक्ति की प्रगति में रुकावट एवं देश की एकता, शान्ति, सम्प्रभुता और धर्म-निरपेक्षता को लगातार खतरा पैदा हो रहा है! अब हम स्वयं से पूछें कि-हम हमारे इन नौकरों (लोक सेवकों) को यों हीं कब तक सहते रहेंगे?

जो भी व्यक्ति इस जनान्दोलन से जुडना चाहें, उसका स्वागत है और निःशुल्क सदस्यता फार्म प्राप्ति हेतु लिखें :-

(सीधे नहीं जुड़ सकने वाले मित्रजन भ्रष्टाचार एवं अत्याचार से बचाव तथा निवारण हेतु उपयोगी कानूनी जानकारी/सुझाव भेज कर सहयोग कर सकते हैं)

डॉ. पुरुषोत्तम मीणा
राष्ट्रीय अध्यक्ष
भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)
राष्ट्रीय अध्यक्ष का कार्यालय
7, तँवर कॉलोनी, खातीपुरा रोड, जयपुर-302006 (राजस्थान)
फोन : 0141-2222225 (सायं : 7 से 8) मो. 098285-02666
E-mail : dr.purushottammeena@yahoo.in

बेनामी ने कहा…

"आदिम गूंज" बहुत सुंदर और बहुत खूब - ब्लॉग भी आकर्षक - हार्दिक शुभकामनाएं

mastkalandr ने कहा…

पर उस पर भी
अब अधिकार न रहा उस का
मरीचिकाओं के जंगल में
भटकता रहा जीवन भर
शायद वही बन कर रह गई थी
उस की एक मात्र नियति..

वाह वाह अति सुन्दर..
हम तहे दिल से आपका स्वागत करते है .. मक्
http://www.youtube.com/mastkalandr

अजय कुमार ने कहा…

हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें

संगीता पुरी ने कहा…

इस नए सुंदर से चिट्ठे के साथ हिंदी ब्‍लॉग जगत में आपका स्‍वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!

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