आदिम गूंज ११




जंगल गाथा

१.

जंगलों के जो राजा थे कभी
भालू शेर और हाथी
वे जंगल से निकलते ही
चांदी के सिक्कों की
झंकार में खो गए
चंद सिक्कों के मोल में
गदहों घोड़ों सा तुल गए
गर सिर उठाकर
जीना भी चाहा जो कभी
तो चांदी के चमचमाते हुए
जूतों से पिट गए
उन्हें बेहोश और अधमरा मान
सियार और गिद्ध भी
उन्हें नोच खाने को पिल पड़े
और आस पास से गुजरते हुई
तमाशबीनों का हुजूम
यूं ही बेवजह भीड़ सा
उनके चारों ओर जुट गई
उन भालू शेर और हाथी के किस्सों को
महज कोई मिथक मान
बाकी लोग भी
बड़ी सहजता से भूल गए
...
उनके वंशज आज भी
राह तकते उनकी/जो
ले जाए गए थे
बंधुवाई में जबरन
जाने कौन से ऋण के एवज
परदेश में मनबहलाव खातिर
...
...

२.

जैसे जंगल में
आजाद घूमते
किसी दुर्लभ जानवर को
शहर ला के
पिंजरे मे
कैद कर लेना
....
जहां रोज
तिल तिल कर जीना
अपमान और तिरस्कार
की खुराक पर
जीवन भर पलना
....
और लोगों की
फ़रमाईश पर
ना चाहते हुए भी
खेल तमाशे दिखाना
....
....

-उज्जवला ज्योति तिग्गा-

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