आदिम गूंज १३

परिवर्तन का काफ़िला

२.

कभी गुजर जाता है
बेहद तीव्र गति से
सब कुछ को रौंदता हुआ
तो कभी गुजर जाता है
बड़ी ही खामोशी से
कि उसका अहसास भी
हो पाता है
अरसा बीतने पर
उसके आने की उम्मीद में
लोग रहते है
पलकें बिछाए
दुआओं की चादर फ़ैलाए
तो कुछ रहते हैं तैयार
उसका रास्ता रोकने
डंडा गाली और गोली का
बदोबस्त किए
...
...

३.


जब उम्मीदें तोड़ देती है दम
बीच राह में...
एक नया सफ़र
फ़िर आरंभ होता है
उस बिंदु से
उससे पार जाने के
जद्दोजहद और कशमकश के मध्य
सब कुछ चलता है से हटकर
सब कुछ को बदलना है
के मुकाम तक का सफ़र
अंजान और अकेला ही सही
पर धूल का गुबार के
छंटने के बाद
भीड़ के तितर बितर होने के बाद
बचे खुचे लोगों का हूजूम
बांधेगा ढे्र सारे पुल
उन खाईयों और गर्तों के
मुहानों पर
जिनके मायाजाल में फ़ंसकर
उलझ/ बिखर जाता है सफ़र और
लोगों का उत्साह और जूनून
...
...


-उज्जवला ज्योति तिग्गा-

1 टिप्पणियाँ:

विनय विनीत ने कहा…

नाउम्मीदी के स्पन्दनहीन दौर में एक सार्थक और प्रेरक प्रस्तुति.

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